Re: मुक्त होने के लिये
ज़हर को अमृत बनाइये
जीवन में क्रोध है, घृणा है, वैमनस्य है, ईष्या है; ये जहर हैं।
अगर इन्हीं जहरों को पीते रहे तो तुम्हारा जीवन जहरीला हो जाएगा,
विषाक्त हो जाएगा।
लेकिन ये जहर रूपांतरित भी हो सकते हैं।
ये जहर अमृत भी बन सकते हैं।
उसी कला का नाम धर्म है जो तुम्हारे भीतर के जहर को अमृत बना दे।
मिट्टी को छू दे और सोना हो जाए—
उसी कला का नाम धर्म है।
क्रोध को करुणा बनाया जा सकता है।
काम को राम बनाया जा सकता है।
(ओशो)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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