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Old 23-03-2014, 09:04 PM   #21
Dr.Shree Vijay
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Arrow Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........


अब तो यही उनकी पहचान है! :

नेता ने सुबह-सुबह दर्पण में झांका तो एकदम से सन्न रह गया।उसके चेहरे से नाक ही गायब थी।घबराकर पत्नी को पुकारा।‘मेरी नाक नहीं दिख रही। कहां गई?’‘वो तो कई सालों से नहीं है, कहां से दिखेगी?’‘नहीं है? और मुझे ही पता नहीं।’‘तुम दूसरी हरकतों में ऐसे व्यस्त रहते हो कि अपनी नाक देखने की फुर्सत ही कहां है तुम्हें?’‘वाह! यह भी खूब कही! अरे, मैं बिना नाक के घूम रहा हूं तो कोई तो कुछ पूछता? कुछ कहता?’‘कौन, क्या कहता? ..समाज तो आपको अब बिना नाक का ही मानता है।’‘कैसी अनर्गल बातें करती हों? क्या नेता नकटे होते हैं? क्या उनके नाक नहीं होती?’‘कभी होती थी। नेहरुजी के जमाने में तो खासी लंबी होती थी।

बाद में वह नाक नेतागीरी के काम में आड़े आने लगी। आप लोगों के काम ऐसे हो गए कि नाक होती तो रोज कटती। इसलिए यह झंझट ही खत्म कर डाली आपने।’‘तुझे यह सब कैसे पता?’‘सारे देश को पता है।’‘और हमें ही नहीं पता? वाह!’‘तुम्हें नहीं पता, क्योंकि तुम्हें अपनी नाक की परवाह ही नहीं। याद करो। जब तुम छुटभैये थे, रोज कहीं न कहीं से थोड़ी-थोड़ी नाक कटाकर आते थे। नाक छोटी होती गई, तुम बड़े होते चले गए। पूरी नाक गायब हुई, तब तो तुम इत्ते बड़े नेता बन सके।’पत्नी नाक और नेतागीरी के विलोम अंतरसंबधों पर बोलती रही।

नेता इस दौरान दर्पण में झांककर अपने चेहरे का मुआयना करता रहा। उसने हर कोण से चेहरा देखा। फिर मुस्काता रहा। फिर हंसने लगा। फिर खिलखिलाने लगा। वैसा लगने लगा, जैसा बिना नाक का हंसता आदमी दिखता है। आप टीवी पर रोज देखते ही हो। नेता हंसते हुए बोला, ‘वैसे, बिना नाक के भी मैं ऐसा कोई बुरा नहीं दिखता। क्या कहती हों?’‘जैसे तुम्हारे बाकी साथी दिखते हैं, वैसे ही तुम भी दिखते हो।’ पत्नी ने कूटनीतिक उत्तर दिया। उसने पुन: दर्पण में स्वयं को गौर से देखा।‘अब तो यही मेरी पहचान है। अब यदि मैंने नाक लगा भी ली तो पॉलिटिक्स में कोई मुझे पहचानेगा भी नहीं।

..अब नाक नहीं है तो न सही। क्यों?’ वह हंस रहा है।पत्नी उसे ध्यान से देख रही है। स्मरण करने की कोशिश भी कर रही है। अब तो याद ही नहीं आ रहा कि जब कभी इसके नाक होती थी, तब यह लगता कैसा था :.........



ज्ञान चतुर्वेदी :
(लेखक जाने-माने व्यंग्यकार हैं)


साभार :.........



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*** Dr.Shri Vijay Ji ***

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