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Old 28-05-2014, 04:24 PM   #30
Dr.Shree Vijay
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Arrow Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........


जब कोई नॉन पॉलिटिकल बंदा पॉलिटिक्स में उतरता है..! :

डिस्क्लेमर :नीचे लिखी गई जीवनी एक गैर-राजनीतिक आदमी की है, जिसका उद्देश्य जनहित है। किसी भी बंदे से इसका संयोग वास्तविकता मात्र है। तो उनका व्यक्तित्व बेहद लीचड़। कृतित्व भयंकर। एक नंबर के भिनकू। गालियों का ओजमयी प्रवाह। टुच्चेपन से ओतप्रोत। उनके प्रारंभिक जीवन के बारे में जितनी जानकारी मिलती है, उसके आधार पर उनका जन्म भी कभी शिशु के रूप में ही हुआ होगा।

बताते हैं कि जब उनका जन्म हुआ तो वे अन्य नवजातों के समान रोए भी, अन्यथा तो उनके संपूर्ण प्रयास दूसरों के आंसू ही निकालते रहे। मोहल्ले के अनुसार, बचपन से ही वे सभी आवारा बच्चों के आदर्श बन गए थे और आवारागर्दी इतनी ऊंचाई की कि सारे बच्चों के बराबर हरकतें अकेले कर सकते थे। पैसे से अपनी तीसरी प्रेमिका और भ्रष्टाचार से अपने भाई से भी ज्यादा प्रेम करते हैं।

लोग जानवरों से भी उनकी तुलना काफी करते थे। कहते थे- बड़े आदमी से बात करते समय वह गऊ टाइप बन जाते हैं। आम आदमी से बात करते समय वे भेड़िए जैसे हो जाते हैं। पत्नी से बात करते समय बकरे के जैसे हो जाते हैं। आलाकमान से बात करते समय वे बिना पूंछ के वफादार जानवर-सी हरकत लगातार करते रहते हैं।

चमचों से बात करते समय वे उन्हें पैरों तले रौंदने के चक्कर में रहते हैं। रहते हर जगह वे ‘वे’ ही हैं, बस समय-समय पर केंचुली उतारते रहते हैं। केंचुली उतारने के प्रति वे इतना श्रद्धाभाव रखते हैं कि आस्तीन में सांप कैसे रहते होंगे, कन्फ्यूजन के बाद भी सांपों को काफी पसंद करते हैं। लोगों का उनकी प्रतिभा के बारे में मानना था, गिरगिट तो कितना भी रंग बदल ले, फिर भी दिख ही जाता है, वे दिखते हैं क्या? कुत्ते के प्रति उनमें दुश्मनी का भाव हमेशा से रहा, वफादारी जैसी बात कोई कहता तो वे कुत्तेपन पर उतर आते हैं।

समस्त विशेषताओं के साथ जिस अनुपात में उनके प्रति लोगों की नफरत बढ़ी, वे आगे बढ़ते चले गए..हमारा प्रश्न है साला आखिर हुआ क्या जो किसी के बारे में गली-चौराहे पर ऐसी बातें चर्चित हुईं, जो बाद में ‘जन-जीवनी’ जैसी शक्ल में ढल गईं। हालांकि कभी उनका व्यक्तित्व सादा, जीवनशैली सहज थी। बाद में एक किराए के मकान में शिफ्ट होने के बाद उनके जीवन में भारी परिवर्तन आया।

पहली मंजिल पर उनके मकान के नीचे एक पार्टी का दफ्तर था। वे सहज जिज्ञासावश लोगों को वहां आते-जाते देखते थे। कई बार दफ्तर का चक्कर भी मार आते। इतने प्रभावित हुए कि जो देखा-सुना जीवन में उतार लिया। भाई साब क्या अब इसके बाद यह भी बताना पड़ेगा कि उनकी ऐसी ‘जन-जीवनी’ क्यों चर्चित हुई :.........


अनुज खरे :
(लेखक युवा व्यंग्यकार हैं)


साभार :.........

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*** Dr.Shri Vijay Ji ***

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