Re: डार्क सेंट की पाठशाला
नकारात्मक भावना त्यागें
एक स्वर्णकार गहना तैयार कर रहा था। अचानक उसे किसी के रोने की आवाज आयी। उसने ध्यान दिया कि यह आवाज उसके सोने में से आ रही है। उसने सोने से उसके दुख की वजह पूछी। सोने ने कहा, हे स्वर्णकार मुझे इस बात का दुख नहीं होता कि तुम मुझे तैयार करते समय ठोकते-पीटते हो, मुझे इस बात का भी दुख नहीं होता कि मुझे आग में तपाया जाता है। मुझे दुख तब होता है जब तुम मुझे लोहे के बाट के साथ रखकर तौलते हो। मुझे रोना आता है कि लोहे के बाट के वजन के साथ मेरे वजन का माप होता है। स्वर्णकार सोने की बात सुनकर हंसने लगा। सोने को चिढ़ लगी। वह स्वर्णकार से बोला तुम्हें मुझ पर हंसी आ रही है। स्वर्णकार बोला, हां तुम नाहक परेशान हो रहे हो। इतनी कीमती धातु होने के बावजूद तुम अपनी तुलना लोहे से कर रहे हो। क्या तुम्हें अपनी कीमत और लोहे की कीमत का अंतर नहीं पता? लोहे के साथ एक ही तराजू में रखे होने के बावजूद लोहे को कोई सोना नहीं कहता और न ही तुम्हारे वजन के बराबर हो जाने पर भी लोह को कोई सोने के भाव खरीदता है। इससे सीख यही मिलती है कि कार्यस्थल पर एक ही छत के नीचे विभिन्न आयु, पद और योग्यता वाले लोग मिलकर एक लक्ष्य के लिए कार्य करते हैं। जहां हर व्यक्ति की अपनी अलग उपयोगिता होती है। उनकी अलग स्किल्स, शैक्षिक और प्रोफेशनल क्वालिफिकेशन और उपयोगिता के आधार पर उनका मूल्यांकन किया जाता है और कार्य सौंपा जाता है। ये जानते-समझते हुए भी कई ऐसे लोग मिल जाते हैं जो अपने महत्व को न समझते हुए अपनी तुलना दूसरे लोगों से करते हैं, अपने मन में दूसरों के प्रति अनजाने ही पक्षपात का आरोप लगाते हैं। कुल मिलाकर अपने मन में किसी भी तरह की नकारात्मक भावना को बढ़ने देने से पहले ये अवश्य देख लें कि आप जिससे तुलना कर रहे हैं उससे तुलना करने की वाकई जरूरत है भी या नहीं। मतलब नकारात्मकता की भावना त्याग दें।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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