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Originally Posted by abhisays
एक बात हम दोनों ओर बार-बार सुनते हैं - 'राष्ट्र का निर्माण-कौम का निर्माण' ! इस विषय में आप दोनों ओर क्या फर्क पाते हैं ?
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इराक में जन्मे मशहूर यहूदी इतिहासकार एरिक जॉन अर्न्स्ट हॉब्सबॉम ने अपनी कृति ‘नेशन्स एण्ड नेशनलिज्म सिन्स 1780’ में कहा था, ‘राज्य कौम का निर्माण करता है, कौमें राज्य नहीं बनाती।’
संसारभर में इसका कोई अपवाद आपको नजर नहीं आएगा, लेकिन जैसे ही आपकी दृष्टि पाकिस्तान पर जाएगी, हॉब्सबॉम का यह कथन झूठ साबित हो जाता है।
हालांकि आपने जो कहा, वह पाकिस्तान के बारे में ही है, भारत में ऐसी चर्चा के कोई मायने नहीं है, क्योंकि ‘भारतीय’ या ‘इण्डियन’ कौम आजादी के पूर्व से ही मजबूत है और लगातार मजबूत हो रही है। आप देशभर में कहीं भी किसी से पूछें, वह कहेगा ‘मैं इण्डियन हूं।’ धर्म, जाति आदि की पहचान तो दोयम है, लेकिन पाकिस्तान में स्थिति आज भी उलट है।
लेकिन पहले हिन्दुस्तान की स्थिति स्पष्ट कर लें। आजादी के बाद जिन लोगों के हाथ भारत की बागडोर आई, उन्होंने धर्म को पीछे धकेलते हुए स्वतंत्रता संग्राम के दौरान मजबूत हुई ‘भारतीय कौम’ की रियासत को आगे बढ़ाने पर जोर दिया और भाषा आधारित प्रांतों का गठन करते हुए धर्म निरपेक्ष राष्ट्र बनने की दिशा में कदम बढ़ाए। इसी के हिसाब से सेना, न्याय, पुलिस, प्रशासन आदि खड़े किए गए। यही वजह है कि ‘भारत’ स्टेट ने ‘भारतीय कौम’ को मजबूती दी।
दूसरी ओर पाकिस्तान का निर्माण ही एक धर्म विशेष के लिए उसके अनुयायियों ने किया था। वहां ‘स्टेट’ (राज्य) खड़ी हो गई, तो मुसलमानियत को राष्ट्रवादी रंग देकर ‘पाकिस्तानी कौम बनाने’ की कोशिश की गई, लेकिन धर्म को सभी अन्य चीजों पर दी गई तरजीह वह सबसे बड़ी वजह है, जिसने इन सभी को विफल कर दिया। भारत ने जिन चीजों को धर्म से बरी रखा था, पाकिस्तान में वह सारी चीजें, सेना, न्याय, पुलिस, प्रशासन धर्म के सांचे में ढाले गए और जिस ब्यूरोक्रेसी पर इसकी देखरेख का जिम्मा था, वह राजनेताओं से ज्यादा शक्तिशाली और सेना के नियंत्रण में थी, अत: उसने लगातार इसी को हवा दी।
इससे इतर भाषा और भौगोलिक परस्थितियों ने भी ‘पाकिस्तानी कौम’ के निर्माण के प्रयासों को विफल किया। 1937 में बंगाल में जब चुनाव हुए, तो 84 प्रतिशत वोट मुस्लिम थे यानी यह मुस्लिम पार्टी का वोट बैंक था, अर्थात् मुस्लिम लीग का वोट बैंक था, लेकिन पाकिस्तान के निर्माण के बाद ईस्ट पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में उर्दू को जबरन थोपने के खिलाफ जो भावनाएं भड़की, उन्होंने देश के दो टुकड़े करा दिए। पाकिस्तान के अन्य प्रांतों फ्रंटियर, सिन्ध और बलोचिस्तान में अपनी राष्ट्रवादी धाराएं चल रही थी और वहां आज भी ये धाराएं कायम हैं। नतीजा सामने है। जाहिर है कि वहां बातें कितनी ही हों, ‘पाकिस्तानी कौम’ का निर्माण एक मृगरीचिका है और सदा यही रहेगी।