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Originally Posted by sumitbagvar
bhai mujhe namak haram wale muhaware ka matlab samajh me nhi aaya, uska ant to achanak ho gaya. Aakhir bodhisatv ne uska apman kis tarah kiya?
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सूत्र भ्रमण के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद, मित्र सुमित बगवार जी. यह ठीक है कि कहानी का अंत अचानक हो गया. यहीं आपको इस मुहावरे के औचित्य ज्ञात हो जाता है. आपने कहानी में पढ़ा कि बोधिसत्व ने बाढ़ से पीड़ित चार प्राणियों की जान बचाई थी और उनको दो दिन तक अपने आतिथ्य में रखा. यहां उनसे जो बन पड़ा उन्होंने उनकी सेवा की. बन्दर, सांप और चूहे ने उनको अपने यहां आने का निमंत्रण दिया; यह विश्वास दिलाया कि वे समय आने पर उनके उपकार का बदला अवश्य देंगे. लेकिन, राजकुमार ने नरेश बनते ही अपनी पहली सी दुष्टता का परिचय देना शुरू कर दिया था. अतः यह जानते हुये भी कि बोधिसत्व ने उसके प्राण बचाये थे और वन में उनका आतिथ्य किया था, उसे भुला दिया तथा निर्दोष बोधिसत्व को बंदी बना कर कोड़े लगाने व अन्ततः फांसी पर लटकाने की सजा भी सुना दी. यह क्या था?
किसी के उपकार को भुला कर उसी के विरुद्ध षड्यंत्र करना ही नमक-हरामी है और यह कथा काशी राजकुमार / नरेश के नमक हराम होने का ही एक उदाहरण है.
मैं समझता हूँ कि अब आपकी शंका का समाधान हो गया होगा, सुमित जी. धन्यवाद.