Re: जीवन्मुक्तलक्षण वर्णन
उसको जो शून्य कहते हैं वे महामूर्ख हैं-जो सबको अधिष्ठान है, सबको धार रहा है और सदा निःसंग है ऐसे चिदाकाश को नमस्कार है | हे राजन्! यह आश्चर्य है कि वह सदा एक रस है पर उनमें नाना तरंग भासते हैं-यही माया है | हे राजन्! एक विद्या धरी और विद्याधर थे | उनके मन्दिर में एक ऋषि आ निकला पर उस विद्याधर ने उनका आदरभाव न किया इससे ऋषीश्वर ने शाप दिया कि तू द्वादशवर्ष पर्यन्त वृक्ष होगा | निदान वह विद्याधर वृक्ष हो गया | पर अब जो हम आये हैं हमारे देखते ही वह शाप से मुक्त हो वृक्षभाव को त्यागकर फिर विद्याधर हुआ है | यह ईश्वर की माया है कि कभी कुछ हो जाता है और कभी कुछ हो जाता है | हे मेघ! तू धन्य है! तेरी चेष्टा भी सुन्दर है, तीर्थों में सदा तेरी स्थिति है, तू सबसे ऊँचे विराजता है और सब आचार तेरा भला दृष्टि आता है परन्तु एक तुझमें नीचता है कि ओले की वर्षा करता है जिससे खेतियाँ नष्ट हो जाती हैं और फिर नहीं उगतीं |
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बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
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