Re: जीवन्मुक्तलक्षण वर्णन
तैसे ही अज्ञानी की चेष्टा देखनेमात्र सुन्दर है और हृदय से मूर्ख हैं, उनकी संगति बुरी है और ज्ञानवान् की चेष्टा देखने में भली नहीं तो भी उनकी संगति कल्याण करती है | हे राजन्! सबमें नीच श्वान हैं क्योंकि जो कोई उसके निकट आता है उसको काट लेता है, घर घर में भटकता फिरता और मलीन स्थानों में जाता है, तैसे ही अज्ञानी जीव श्रेष्ठ पुरुषों की निन्दा करता है पर मन में तृष्णा रखता है और विषयरूपी मलीन स्थानों में गिरता है | वह मूर्ख मनुष्य मानो श्वान है और श्वान से भी नीच है | ब्रह्मा ने सम्पूर्ण जगत् को रचा है परन्तु उसमें श्वान सबसे नीच है पर श्वान क्या समझता है सो सुनो | एक पुरुष ने श्वान से प्रश्न किया कि हे श्वान! तुझसे कोई नीच है अथवा नहीं? तब श्वान ने कहा कि मुझमें भी नीच मूर्ख मनुष्य है और उससे मैं श्रेष्ठ हूँ क्योंकि प्रथम तो मैं सूरमा हूँ, दूसरे जिसका भोजन खाता हूँ उसकी रक्षा करता हूँ और उसके द्वारे बैठा रहता हूँ पर मूर्ख से ये तीनों कार्य नहीं होते |इससे मैं उससे श्रेष्ठ हूँ क्योंकि मूर्ख को देहाभिमान है इससे वह श्वान से भी नीच है |
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बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
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