Re: अघोषित आलसी का इकबालनामा
ये ब्रह्मज्ञान आज ही राजौरी गार्डन की मार्केट में मिला है, रोज-रोज व्यवस्था को कोसना अच्छी बात नहीं. छोड़ दिया है कोसना ....... जैसा है–जहाँ है के आधार पर सब ठीक है.... पर पता नहीं कब तक? कब तक ये ज्ञान मेरे विद्रोही स्वर को दबा कर रखेगा... कुछ भी नहीं कह सकते ... दूसरा पैग लगाते ही की-बोर्ड की दरकार हो उठती है और बन्दा बेकरार हो उठता है..... चलो कविता ही सही. नहीं आती लिखनी तो भी लिखो.
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