Re: गंगा से कावेरी तक
रात ठीक से नींद नहीं आई वह बिस्तर साथ नहीं लाया था। चद्दर और तकिया तकनहीं, ट्रेन में बेड रोल भी उपलब्ध नहीं था। एयर कंडीशनर ने कंपार्टमेंट ठंडा कर दिया । उसने महसूस किया कि सोते वक़्त ठंड कुछ ज्यादा ही लगती है।सुबह छह बजे वेटर ने आकर जगा दिया, चाय ले आया था। दोपहर खाना खाने के बाद डेढ़ घंटे वह फिर सो लिया। नींद खुली तो विजयवाड़ा आने वाला था। विजयवाड़ा में एक कप काफी पी। वह कंपनी को टेलीग्राम करना चाहता था कि लेट पहुँच रहा है। पर आर.एम.एस. का टेलीग्राफ ऑफिस प्लेटफार्म से बहुत आगे था, सो वह रुक गया।
गाड़ी चल रही थी। डिब्बे से बाहर गैलरी में निकलकर लोग बाग सिगरेट पी रहे थे। बार-बार निकलते हुए आधे यात्रियों से मुस्कराहट एक्सचेंज होने लगी थी। दो विदेशी भी थे। तपन ने पूछा आप कहाँ से हैं ? 'स्विटज़रलैंड'। दोनों भाई लग रहे थे। पर एक के चेहरे पर अजीब सा चिकनापन था। तपन ने गौर से देखा कहीं यह स्त्री तो नहीं पर फिर उसे लगा वह पुरुष ही था। हाँ, स्त्रियों के गुण उसमें विद्यमान थे। तीन विद्यार्थीनुमा लड़के उसके निकट वाली बर्थों पर थे। लड़के होशियार और गंभीर थे। उत्तर भारत के उन लड़कों से अलग जो गाड़ी में तीन-चार की संख्या में सवार हो जाएँ तो गाड़ी सर पर उठा लें। गुंटूर आने वाला था। दस बजे तक चेन्नै पहुँचेगी गाड़ी । लेट है थोड़ी । वहाँ पहुँच कर होटल तलाशेगा और कल कंपनी के मैनेजर से मिलेगा, फिर दिल्ली । नई नौकरी में कहाँ पोस्टिंग होती है, पता नहीं। कुछ निराशा सी हो रही है। उसकी पूरी सीनियारिटी जाती रही है। वह कैरिअरिस्ट नहीं है पर पीछे छूटने का दुख तो है ही।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 18-06-2014 at 01:34 PM.
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