फिदेल कास्ट्रो
दिदेल कास्त्रो क्यूबा के राजनेता हैं। वे क्यूबा की क्रान्ति के प्रमुख नेता हैं जो सन् १९५९ की फरवरी से १९७६ के दिसम्बर तक क्यूबा के प्रधानमंत्री रहे और उसके बाद क्यूबा के राष्ट्रपति बने। २००८ के फरवरी में स्वेच्छा से उन्होने पदत्याग कर दिया। सम्प्रति वे क्यूबा की कम्युनिस्ट पार्टी के प्रथम सचिव (सेक्रेटरी) हैं। फिदेल कास्त्रो को अमरीका विरोधी रुख़ के लिए दुनिया भर में जाना जाता है।
फिदेल कास्त्रो का जन्म 1926 में क्यूबा के फिदेल अलेजांद्रो कास्त्रो परिवार में हुआ था जो काफ़ी समृद्ध माना जाता था. फिदेल कास्त्रो ने हवाना विश्वविद्यालय से क़ानून की डिग्री ली लेकिन वह अपने ख़ुद के ख़ुशहाल परिवार और बहुत से ग़रीबों के बीच के अंतर को देखकर बहुत घबराए और इस परेशानी की वजह से वह मार्क्सवादी-लेनिनवादी क्रांतिकारी बन गए.
1953 में उन्होंने क्यूबा के राष्ट्रपति फुलगेंसियो बतिस्ता की सत्ता के ख़िलाफ़ हथियार उठा लिए. जनक्रांति शुरू करने के इरादे से 26 जुलाई को फिदेल कास्त्रो ने अपने 100 साथियों के साथ सैंतियागो डी क्यूबा में सैनिक बैरक पर हमला किया लेकिन नाकाम रहे.
इस हमले के बाद फिदेल कास्त्रो और उनके भाई राउल बच तो गए लेकिन उन्हें जेल में डाल दिया गया. दो साल बाद उन्हें माफ़ी देते हुए छोड़ दिया गया लेकिन फिदेल कास्त्रो ने बतिस्ता शासन के ख़िलाफ़ अभियान बंद नहीं किया. यह अभियान उन्होंने मैक्सिको में निर्वासित जीवन जीते हुए चलाया. वहाँ उन्होंने एक छापामार संगठन बनाया जिसे "26 आंदोलन" का नाम दिया गया.
फिदेल कास्त्रो के क्रांतिकारी आदर्शों को क्यूबा में काफ़ी समर्थन मिला और 1959 में उनके संगठन ने बतिस्ता शासन का तख़्ता पलट दिया. बतिस्ता के शासन को भ्रष्टाचार, असमानता और अन्य तरह की परेशानियों का प्रतीक माना जाने लगा था.
क्यूबा के नए शासकों में अर्जेंटीना के क्रांतिकारी चे ग्वारा भी शामिल थे जिन्होंने आम लोगों को ज़मीन देने और ग़रीबों के अधिकारों की हिफ़ाज़त करने का वादा किया.
फिदेल कास्त्रो ने ज़ोर दिया कि उनकी विचारधारा मुख्य रूप से क्यूबाई है, “एक सुनियोजित अर्थव्यवस्था में कोई साम्यवाद या मार्क्सवाद नहीं है बल्कि प्रतिनिधिक लोकतंत्र और सामाजिक न्याय असली तत्व हैं.”
फिदेल कास्त्रो पर अमरीकी राष्ट्रपति ड्वाइट आइज़नहावर ने लगाम कसने की कोशिश की और उन्होंने दावा किया कि उन्हें सोवियत संघ और उसके नेता निकिता ख़्रुश्चेव की बाहों में धकेला गया. उस समय क्यूबा शीतयुद्ध का मैदान बन गया. अप्रैल 1961 में अमरीका ने फिदेल कास्त्रो का तख़्ता पलट करने की कोशिश की और ऐसा उसने निर्वासन में जीवन जीने वाले क्यूबाइयों की एक सेना बनाकर किया. लेकिन क्यूबाई सैनिकों ने आक्रमण का मज़बूत जवाब दिया जिसमें बहुत से लोग मारे गए और लगभग एक हज़ार को पकड़ लिया गया.
एक साल बाद अमरीका के एक जासूसी विमान ने पता लगाया कि सोवियत संघ से कुछ मिसाइलें क्यूबा की तरफ़ भेजी जा रही हैं. बस वहीं पर ऐसा लगा कि दुनिया मानो परमाणु युद्ध के कगार पर पहुँच गई थी. दोनों महाशक्तियाँ एक दूसरे के सामने तनी हुई खड़ी थीं लेकिन सोवियत नेता ने आख़िर रास्ता दिया. सोवियत संघ ने क्यूबा से अपने मिसाइल वापिस हटा लिए और इसके बदले अमरीका ने गुप्त रूप से तुर्की से अपने हथियार हटा लिए.
अलबत्ता फिदेल कास्त्रो अमरीका के दुश्मन नंबर एक बने रहे. एक क्यूबाई मंत्री का कहना है कि अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए ने कम से कम 600 बार फिदेल कास्त्रो को मारने की कोशिश की.
फिदेल कास्त्रो को मारने का एक तरीका यह भी सोचा गया था कि एक सिगार में विस्फोटक भरकर उन्हें पीने के लिए दिया जाए. ग़ौरतलब है कि फिदेल कास्त्रो सिगार पीने के शौकीन हैं.
फिदेल कास्त्रो के ख़िलाफ़ और बहुत से तरीकों की साज़िश रची गई जो बहुत ख़तरनाक और दिलचस्प थीं. उनमें से एक यह भी थी कि उनकी दाढ़ी पकड़कर खींच दी जाए.
सोवियत संघ ने क्यूबा में बेतहाशा धन पहुँचाया. उसने क्यूबा में पैदा होने वाली चीनी बड़े पैमाने पर ख़रीदी और बदले में भरे हुए जहाज़ क्यूबा के बंदरगाहों पर पहुँचाए. उनमें ऐसा सामान भरा होता था जो अमरीकी प्रतिबंधों का मुक़ाबला करने में मददगार साबित होता था.
राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो ने सोवियत संघ पर इतनी निर्भरता के बावजूद क्यूबा को गुट निरपेक्ष आंदोलन में काफ़ी आगे रखा. लेकिन 1980 में सोवियत नेता मिखाइल गोर्बोच्योफ़ का युग राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो की क्रांति के लिए बहुत ख़तरनाक साबित हुआ. सोवियत संघ ने क्यूबा की अर्थव्यवस्था में अपने सहयोग से हाथ खींच लिया और उसकी चीनी ख़रीदनी बंद कर दी.
सोवियत संघ के इस बहिष्कार और अमरीकी प्रतिबंधों के बावजूद क्यूबा ने हिम्मत नहीं हारी. हालाँकि खाद्य सामग्री के लिए लोगों की लंबी लाइनें बढ़ने के साथ-साथ उनमें नाराज़गी बढ़ती गई.
1990 के दशक के मध्य तक आते-आते बहुत से क्यूबाई बहुत नाराज़ हो गए थे. हज़ारों ने समुद्र से होकर फ्लोरिडा की तरफ़ भागने का रास्ता अपनाया, उनमें से बहुत से डूब भी गए.
यह एक तरह से फिदेल कास्त्रो के ख़िलाफ़ अविश्वास व्यक्त करने जैसा था. यहाँ तक कि फिदेल कास्त्रो की बेटी एलिना फर्नांडीज़ ने भी बग़ावत का रास्ता अपनाया और अमरीका के मियामी में पनाह ली.
फिदेल कास्त्रो ने अमरीकी बहिष्कार को एक बहाने के तौर पर इस्तेमाल करके देश में लोकतंत्र बहाल नहीं होने दिया है और सिर्फ़ एक दलीय शासन चलाते रहे हैं. लेकिन उनके शासन काल में क्यूबा में बहुत सी सुविधाएँ हैं. सबके लिए मुफ़्त चिकित्सा सुविधाएँ हैं, 98 प्रतिशत साक्षरता है और क्यूबा में शिशु मृत्यु दर पश्चिमी देशों के मुक़ाबले ख़राब नहीं है.
फिदेल कास्त्रो जब-तब अमरीका को भड़काकर कूटनीतिक लड़ाई में शामिल हो जाते हैं. उन्होंने वेनेज़ुएला को भी अपने पाले में मिला रखा है जहाँ उनके घनिष्ठ मित्र ह्यूगो शावेज़ शासन करते हैं और वह भी अमरीका-विरोधी रुख़ रखते हैं.
क्यूबा में बहुत से लोग जहाँ एक तरफ़ फिदेल कास्त्रो को नापसंद करते हैं, वहीं बहुत से ऐसे भी हैं जो उनसे सच्चा लगाव रखते हैं. लगभग आधी सदी के शासन के बाद भी फिदेल कास्त्रो क्यूबा में एक करिश्माई व्यक्तित्व हैं.