Re: भुत, वहम, संयोग या सत्य ( किस्से )
अब मैं भुत पर विश्वास नहीं करता हूँ.शायद पांचवी क्लास तक मुझे डर लगता था.लेकिन बाद मैं वो भी डर चला गया/मैं जिस स्कूल के हॉस्टल में रहता था/कहा जाता था की वहाँ पर कभी स्मसान घाट या कब्रिस्तान था और २०० फूट की दुरी पर एक नीम का पेड़ था/उसके बारे में कहा जाता था की वहाँ पर चुदैल तांत्रिक क्रियाएँ कराती थी.लेकिन हॉस्टल में रहने की वजह से मैं थोड़ा हिम्मत वाला हो गया.क्यूंकि रात में कभी १ नंबर के लिए जाना होता था तो अपने आप को हौसला देना होता था.क्यूंकि सुनसान रास्ते में जाने पर यदि कोई आवाज होती थी तो दिल में डर सा बैठ जाता था.फिर एक बार गाँधी जी की वो कहानी सुनी जिसमे उनकी दाई डर भगाने के लिए राम नाम का जाप करने को कहती थी.पहले तो मैंने यही तरीका अपनाया/तो थोड़ी राहत मिलती थी.
जैसे जैसे मैं बड़ा होता गया/थोड़ा होशियार हो गया तो डर से पंगा लेने लगा.मैं हर उस वस्तु और जगह को देखने लगा जिससे मुझे डर लगता था और मैं यह जानने की कोशीश करता था की अजीब सी आवाज या परछाई कैसे बन रही है.जब मैं कारन तक पहुच जाता था तो डर अपने आप निकल जाता था.अब तो ऐसा हो गया है की भुत का विचार ही नहीं आता है/
इस बात पर बहुत बार मेरे दोस्तों में बहस हुई है की भुत है या नहीं.बहुत से मित्र कहते हैं की यदि भगवान है तो भुत भी है.लेकिन मैं उनके इस विचार से सहमत नहीं हूँ.मैंने बहुत बार भुत के बारे में सोच कर डरने की कोशीश की है लेकिन मुझे डर नहीं लगता है.लेकिन जब भगवान के बारे में सोचता हूँ.तो मुझे उसके उपस्थिति का एहसास भी होता है.डर को भगाने का एक तरीका यह है की यदि कोई भी आवाज हो तो उस आवाज का पीछा करें या कोई साया बन रहां हो तो उसके बनाने की वजह ठन्डे दिमाग से जाने की कोशीश करने/फिर देखिये आप का डर दूर हो जायेगा/
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