Re: मां
माँ में बसता है भगवान
हर व्यक्ति को अपने जीवन के रंगमंच पर कई किरदारों को निभाना पड़ता है। रिश्तों की उधेड़बुन के इस नाटक में कुछ का अभिनय इतना अच्छा होता है कि वो हर किरदार में फिट बैठ जाते हैं और कुछ किरदार स्वत: ही ऐसे दमदार होते हैं, जिसमें हर कोई फिट बैठ जाता है।
माँ, औरत का एक ऐसा किरदार है, जिसमें संपूर्णता, पवित्रता, त्याग, ममता, प्यार सब कुछ निहित होता है। शायद ही दुनिया का कोई अन्य रिश्ता ऐसा हो, जिसमें इतनी सारी खूबियाँ एकसाथ होती हों।
एक औरत के रूप में संतान को जन्म देकर माँ अपने कुल का मान बढ़ाती है तो वहीं उसे संस्कारों का पाठ पढ़ाकर मर्यादा की आचार-संहिता में जीना सिखाती है। माँ शब्द जितना मीठा है, उतनी ही मीठी माँ की ममता भी।
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मेरी चित्रशाला : दिल दोस्ती प्यार ....या ... .
तुमने मजबूर किया हम मजबूर हो गये ,...
तुम बेवफा निकले हम मशहूर हो गये ..
एक " तुम " और एक मोहब्बत तेरी,
बस इन दो लफ़्ज़ों में " दुनिया " मेरी..
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