Re: इधर-उधर से
फिर उसस्त्री ने एफिम को भोजन कराया और सोनेके लिए स्थान बताया। एफिम विश्रामके लिए लेटा, पर उसे नींद नहीं आई। उसके मन में निरंतर एलिशा का ध्यान आता रहा। उसे याद था कि उसने जेरुसलेमके चर्च में एलिशा को विशेष स्थान पर खड़े देखा था और वह यह तो जानता था कि वह एलिशा को इसी झोंपड़ी में छोड़ गया था।
उसकी समझ मेंकुछ भी नहीं आ रहा था। मन-ही-मन उसे ऐसा लगने लगा कि ईश्वर ने शायद उसकी तीर्थ-यात्रा स्वीकार नहीं की परंतु एलिशा की तीर्थयात्रा अवश्य स्वीकार हुई है।
प्रातःकाल वह अपने गाँव की ओर चल पड़ा। गाँव पहुँचकर वह सबसे पहले एलिशाके घर गया। एफिम को देखकर वह बहुत प्रसन्न हुआ और बोला - मित्र, आशा है आप जेरुसलेम की यात्रा सकुशल पूरी कर आए?
एफिम बोला – “मित्र, मेरा शरीर तो वहाँ अवश्य पहुच गया, परंतु मेरी आत्मा वहाँ पहुच सकी, इसमें मुझे संदह है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि तुम्हारी आत्मा वहाँ थी।मैंने अपनी आँखों से तुम्हें चर्चके भीतरी भाग में दीपमालाके पीछे खड़े देखा था। तुम्हीं सच्चे तीर्थयात्री और ईश्वरके प्रिय हो।“
“मैं समझ गया हूँ कि मानव सेवा ही सच्ची ईश्वर सेवा है।“
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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