Re: पारख साहब के दिलचस्प किस्से
कोई खात मस्त, कोई ख्वात मस्त
आज के इंसान की आत्म-केन्द्रित मनोवृत्ति के बारे में टिप्पणी करते हुए पारख साहब ने निम्नलिखित कविता सुनाई:
कोई खात मस्त, कोई ख्वात मस्त,
कोई मस्त है जूए में,
मालिक तो हैं अपने में मस्त,
और गए सब कूयें में.
(4/11/1976)
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