Re: मुहावरों की कहानी
राम राम जपना, पराया माल जपना
(उत्पत्ति)
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राम नाम जपना, पराया माल अपना’ – आजकल तो यह जुमला अधिक सुनाई नहीं देता है पर जब मैं स्कूल में था उन दिनों इसका बड़ा बोल-बाला था। इस जुमले ने न-जाने कितने बालक-बालिकाओं के मन में ब्राह्मणों के विरुद्ध दुर्भावना का बीज बोया था। समाज में कुछ ऐसी छवि आँकी गई थी जैसे ब्राह्मण मुँह से तो राम-नाम जपते दिखाई देते हैं पर उनकी नज़र दूसरों के माल पर रहती है जिसे वे हड़पने की फ़िराक में होते हैं। यह ख्याल कभी भी मेरे मन में न आया कि आर्यसमाज का इस षड़यंत्र में कोई हाथ हो सकता है। एक विद्वान वक्ता ने अपने श्रोताओं को बड़े ही गर्व से बताया कि उस तुकबंदी को रचने का श्रेय आर्यसमाज को ही जाता है।
हमें यह सामग्री इन्टरनेट से प्राप्त हुई है. किसी का दिल दुखाने की हमारी कोई मंशा नहीं है.
(साभार: सत्यमार्ग)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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