Re: इस्मत चुगताई की कहानियाँ
शाम को मिर्जा लौटे तो ऐसा लगा कि मरहूमा बी-अम्मा आ गयी हों. घर साफ़, चन्दन व लोबान की भीनी-भीनी खुशबू, कोरे मटके पर झिलमिलाता मंजा हुआ कटोरा...जी भर आया. चुपचाप भुना हुआ सालन और रोटी खाते रहे. लाजो अपनी हैसियत के मुताबिक दहलीज पर बैठी पंखा करती रही.
रात को दो टाट के परदे मिलाकर जब बावर्चीखाने में लेटी तो मिर्जा पर फिर शिद्दत की प्यास का दौरा पड़ा. जी मारे लेटे उसके कड़ों की झंकार सुनते रहे; करवटें बदलते रहे. जी कह रहा था कि बड़ी बेकदरी की थी उन्होंने उसकी!
"लाहौल विला कूव्वत..." यकायक वह भन्नाए हुए उठे और टाट पर से घरवाली को समेट लिया.
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काम्या
What does not kill me makes me stronger!
Last edited by MissK; 12-06-2011 at 03:38 PM.
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