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Originally Posted by rajnish manga
एक बहुत खूबसूरत ग़ज़ल के लिये शुक्रिया, सोमबीर जी.
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Originally Posted by dipu
बहुत बढ़िया ............
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Originally Posted by jai_bhardwaj
जीवन की बहुत सी कठोरतम सच्चाइयों को शब्दों में पिरो कर मंच में साझा करने के लिए हार्दिक आभार बन्धु।
नज़र का दोष समझूँ मैं,अकल का नुक्स समझूँ मैं
ग़ज़ल के ज़र्रे ज़र्रे में, 'जय' अपना अक्स देखूँ मैं
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होसला अफजाई के लिए शुक्रिया आदरनिये श्री रजनीश मांगा जी,दीपु जी वा जय भारद्वाज जी