04-12-2014, 07:27 AM
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#1063
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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Originally Posted by dr.shree vijay
हम उन्हें, वोह हमें भुला बैठे,
दो गुनहगार ज़हर खा बैठे,
आंधियो! जाओ अब करो आराम!
हम खुद अपना दिया बुझा बैठे...........
(खुमार बाराबंकवी)
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ठीक है ये दर्द तुमने ही दिया मुझको
पर तुम्हें मैं दर्द का कारण न मानूं तो
दे रहे हो तुम खुले बाजार का नारा
मैं तुम्हारी बात जन-गण-मन न मानूं तो
(ओम प्रकाश चतुर्वेदी पराग)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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