Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
Quote:
Originally Posted by soni pushpa
तेरे घर के द्वार बहुत हैं,
किसमें हो कर आऊं मैं?
सब द्वारों पर भीड़ मची है,
कैसे भीतर जाऊं मै
द्बारपाल भय दिखलाते हैं,
कुछ ही जन जाने पाते हैं
तेरी विभव कल्पना कर के,
उसके वर्णन से मन भर के,
भूल रहे हैं जन बाहर के
कैसे तुझे भुलाऊं मैं?................
0
मैथिलीशरण गुप्त... Maithili sharan gupt
(गुणगान)
|
उक्त सुंदर कविता के लिए व सूत्र को गति प्रदान करने के लिए आपका धन्यवाद, पुष्पा सोनी जी. अर्ज़ किया है:
मुंह की बात सुने हर कोई दिल के दर्द को जाने कौन
आवाज़ों के बाज़ारों में........खामोशी पहचाने कौन
(निदा फ़ाज़ली)
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 24-01-2015 at 06:47 AM.
|