Re: कहानी का रूपान्तरण
जैसा कि हमने बताया- वर्ष 1963 में लोकार्पित हिन्दी फ़ीचर फ़िल्म 'ये रास्ते हैं प्यार के' की कहानी की समानता 'नानावटी के मुकदमे' की कहानी से होना महज एक संयोग था। इस फ़िल्म की कहानी 'नानावटी के मुकदमे' की कहानी से काफी हद तक मिलती है। हमने यह भी बताया कि 'नानावटी के मुकदमे' की कहानी का मुख्य अंश 'पत्नी के विवाहेतर सम्बन्ध की जानकारी होने के बाद नानावटी ने आत्महत्या करने का प्रयत्न किया किन्तु सिल्विया के समझाने-बुझाने के बाद शान्त हो गया' था। 'नानावटी के मुकदमे' की कहानी के इस मुख्यांश को हिन्दी फ़ीचर फ़िल्म 'ये रास्ते हैं प्यार के' में काफी मशक्कत करके दूसरी तरह से प्रस्तुत किया गया है जो कि निम्नलिखित है-
'पत्नी नीना (लीला नायडू) के विवाहेतर सम्बन्ध अशोक (रहमान) से होने की बात संज्ञान में आते ही अनिल साहनी (सुनील दत्त) विचलित और व्यथित हो जाता है। अनिल को व्यथित देखकर नीना अनिल का परित्याग करके घर छोड़कर जाना चाहती है, किन्तु मासूम दो बच्चों का हवाला देकर अनिल उसे जाने नहीं देता। बात यहीं पर खत्म नहीं हो जाती। अनिल नीना से काफी खफ़ा रहता है। अनिल के पिता दो मासूम बच्चों का हवाला देकर नीना को माफ़ कर देने के लिए कहते हैं। व्यथित अनिल नीना की बेवफ़ाई को हजम न कर पाने के कारण उसे डाँटता-फटकारता है और उसका गला दबाने का भी प्रयास करता है किन्तु बच्चों के बीच में आ जाने के कारण छोड़ देता है। अनिल के डाँटने-फटकारने के कारण नीना और अधिक अपराध-भाव से ग्रस्त होकर अत्यधिक दुःखित हो जाती है। नीना का दुःख अनिल बर्दाश्त नहीं कर पाता और अत्यधिक क्रोधपूर्वक नीना को बहलाकर पथभ्रष्ट करके दुःख के सागर में धकेलने वाले अशोक से मिलने के लिए जाता है। अशोक और अनिल में जबरदस्त वाक्युद्ध होता है और फिर दोनों में हुई हाथापाई के फलस्वरूप अशोक मारा जाता है।'
Last edited by Rajat Vynar; 19-04-2017 at 02:56 PM.
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