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Originally Posted by sikandar
जय हिँद मित्रोँ हम उपस्थित हैँ..
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अनुज सिकंदर, सुबह से तुम्हारी ही एक हाजिरी लगी है. तो फिर में से हम कैसे हो गए ? क्या कोई और भी है साथ में ?. वैसे आदमी की जमीन उसके साथ हमेशा ही चलती है. जमीन मतलब भूमि का एक टुकड़ा ही नहीं है मित्र. इसके और भी मायने हैं. चलो इन बातों को करने की बजाय में तो अपनी हाजिरी लगा देता हूँ.