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Originally Posted by rajnish manga
‘मुझे शिकायत है उस समाज के उस ढांचे से जो इंसान से उसकी इंसानियत छीन लेता है, मतलब के लिए अपने भाई को बेगाना बनाता है. दोस्त को दुश्मन बनाता है. बुतों को पूजा जाता है, जिन्दा इंसान को पैरों तले रौंदा जाता है. किसी के दुःख दर्द पर आंसू बहाना बुज़दिली समझी जाती है. छुप कर मिलना कमजोरी मानी जाती है.’ आज हम उसी फिल्म ‘प्यासा’ को आपके सामने लेखनी के जरिए रख रहे हैं.
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यह बातें आज भी कितनी प्रासंगिक है. गुरुदत्त की फिल्में आज भी आपको सोचने पर विवश करती हैं. रजनीश जी, इस सूत्र के लिए धन्यवाद.