Re: ज़ोरॉस्ट्रा या ज़रथुस्त्र
भौतिक सुख-सुविधाओं से संपन्न जीवन की मनाही नहीं है, लेकिन यह भी कहा गया है कि समाज से तुम जितना लेते हो, उससे अधिक उसे दो। किसी का हक मारकर या शोषण करके कुछ पाना दुराचार है। जो हमसे कम सम्पन्न हैं, उनकी सदैव मदद करना चाहिए।
जरथोस्ती धर्म में दैहिक मृत्यु को बुराई की अस्थायी जीत माना गया है। इसके बाद मृतक की आत्मा का इंसाफ होगा। यदि वह सदाचारी हुई तो आनंद व प्रकाश में वास पाएगी और यदि दुराचारी हुई तो अंधकार व नैराश्य की गहराइयों में जाएगी, लेकिन दुराचारी आत्मा की यह स्थिति भी अस्थायी है। आखिर जरथोस्ती धर्म विश्व का अंतिम उद्देश्य अच्छाई की जीत को मानता है, बुराई की सजा को नहीं।
अतः यह मान्यता है कि अंततः कई मुक्तिदाता आकर बुराई पर अच्छाई की जीत पूरी करेंगे। तब अहुरा मजदा असीम प्रकाश के रूप में सर्वसामर्थ्यवान होंगे। फिर आत्माओं का अंतिम फैसला होगा।
फारस शब्द बदलकर, पारस बना और पारस से पारसी। फारस देश के रहने वाले व्यक्ति ही पारसी कहलाए। ईरान देश का ही प्राचीन नाम फारस था। इस प्रकार हम कह सकते है कि फारस देश का रहने वाला, फारस देश से संबंध रखने वाला या फारस का। आदि पारसी शब्द के अर्थ है।
वैदिक संस्कृति और पारसी धर्मपारसी धर्म एवं हिंदूओं की वैदिक सभ्यता में गहरी समानता है। अग्नि की महत्ता एवं पूजा तथा यज्ञ परंपरा का दोनों में ही समान रूप से प्रचलन रहा है। हिंदुओं के प्रथम वेद ऋग्वेद के प्रथम मंडल के प्रथम सूक्त के प्रथम मंत्र में ही अग्नि का आह्वान किया गया है। दोनों में ही अग्नि को देव शक्ति के रूप में पूजा गया है। वैदिक ऋषियों का दैनिक कार्य यज्ञ करना था। पारसी धर्म में भी यज्ञ का वैसा ही महत्व है जैसा कि वैदिक धर्म में। पारसी धर्म में अग्नि की उपासना धार्मिक कार्यों में प्रमुख अंग है। अग्नि उनके यहां सदा जलती रहती है। रात-दिन आठों पहर, चौंसठ घड़ी। इससे यह प्रकट होता है कि वैदिक आर्य और पारसी दोनों ही आर्यों की संतानें हैं.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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