अगर उस वक्त ही गुलज़ार, बासु दा की फिल्में को ध्यान में रख कर फिल्में बनने लगती...तो आज हमारी ईन्डस्ट्री अपने उत्कृष्टता के मुकाम पर होती। आज भी टेलेन्टेड लोगों की कमी नहीं है...उल्टा मल्टी टेलेन्टेड लोगों से ईन्डस्ट्री भरी पडी है। फिर भी कुछ चुनींदा लोग मिल के अपना वही पुराना राग आलाप रहें है। करोंडों कमाने में लगे हुए है और फिल्म से कला का लेबल निकाल कर वहां एन्टरटेईनमेन्ट का स्टीकर चिपका दिया गया है।