Re: "हिन्दू काल गणना"
भारतीय गणित का प्रसार
ऐसा लगता है कि इस्लामी हमलों की तीव्रता के बाद, जब महाविद्यालयों और विश्व विद्यालयों का स्थान मदरसों ने ले लिया तब गणित के अध्ययन की गति मंद पड़ गई। लेकिन यही समय था जब भारतीय गणित की पुस्तकें भारी संख्या में अरबी और फारसी भाषाओं में अनूदित हुईं। यद्यपि अरब विद्वान बेबीलोनीय, सीरियाई, ग्रीक और कुछ चीनी पुस्तकों सहित विविध स्त्रोतों पर निर्भर करते थे परंतु भारतीय गणित की पुस्तकों का योगदान विशेषरूप से महत्वपूर्ण था। 8 वीं सदी में बगदाद के इब्न तारिक और अल फजरी, 9 वीं सदी में बसरा के अल किंदी, 9 वीं सदी में ही खीवा के अल ख्वारिज्.मी, 9 वीं सदी में मगरिब के अल कायारवानी जो ’’किताबफी अल हिसाब अल हिंदी’’ के लेखक थे, 10 वीं सदी में दमिश्क के अल उक्लिदिसी जिन्होंने ’’भारतीय गणित के अध्याय’’ लिखी, इब्न सिना, 11 वीं सदी में ग्रेनेडा, स्पेन के इब्न अल सम्ह, 11 वीं सदी में खुरासान, फारस के अल नसावी, 11 वीं सदी में खीवा में जन्मे अल बरूनी जिनका देहांत अफगानिस्तान में हुआ, तेहरान के अल राजी, 11 वीं सदी में कोर्डोवा के इब्न अल सफ्फर ये कुछ नाम हैं जिनकी वैज्ञानिक पुस्तकों का आधार अनूदित भारतीय ग्रंथ थे। कई प्रमाणों, अवधारणाओं और सूत्रों के भारतीय स्त्रोत् के होने के अभिलेख परवर्ती सदियों में धूमिल पड़ गए लेकिन भारतीय गणित की शानदार अतिशय देन को कई मशहूर अरबी और फारसी विद्वानों ने मुक्त कंठ से स्वीकार किया है, विशेष रूप से स्पेन में। अब्बासी विद्वान अल गहेथ ने लिखाः ’’भारत ज्ञान, विचार और अनुभूतियों का स्त्रोत है।’’ 956 ई में अल मौदूदी ने जिसने पश्चिमी भारत का भ्रमण किया था, भारतीय विज्ञान की महत्ता के बारे में लिखा था। सईद अल अंदलूसी, 11 वीं सदी का स्पेन का विद्वान और दरबारी इतिहासकार, भारतीय सभ्यता की जमकर तारीफ करने वालों में से एक था और उसने विज्ञान और गणित में भारत की उपलब्धियों पर विशेष टिप्पणी की थी। अंततः भारतीय बीजगणित और त्रिकोणमिति अनुवाद के एक चक्र से गुजरकर अरब दुनिया से स्पेन और सिसली पहुंची और वहां से सारे यूरोप में प्रविष्ट हुई। उसी समय ग्रीस और मिश्र की वैज्ञानिक कृतियों के अरबी और फारसी अनुवाद भारत में सुगमता से उपलब्ध हो गये।
|