Re: ~!!आनन्दमठ!!~
इसके बाद दोनों अनेक तर्क-वितर्क हुए।
कल्याणी- शहर में जाने से क्या विशेष उपकार होगा?
महेंद्र- वह स्थान भी शायद ऐसे ही जन शून्य, प्राणरक्षा के उपाय से रहित है
कल्याणी-मुर्शिदाबाद, कासिम बाजार या कलकत्ता जाने से प्राणरक्षा हो सकेगी। इस स्थान से तो त्याग देना हर तरह से उचित है?
महेंद्र ने कहा-यह घर बहुत दिनों से वंशानुक्रम से संचित धन से परिपूर्ण है, इन्हें तो चोर लूट ले जाएंगे।
कल्याणी-यदि वह लोग लूटने के लिए आएं तो क्या हम दो जन रक्षा कर सकते है? प्राण ही न रहा तो धन कौन भोगेगा? चलो, अभी से ही सब बंद-संद करके चल चलें।
अगर जिंदा रह गए तो फिर आकर भोग करेंगे।
महेंद्र ने पूछा- क्या तुम राह चल सकोगी? कहार सब मर ही गए हैं। बैल हैं तो गाड़ी नहीं है और गाड़ी है तो बैल नहीं है।
कल्याणी -तुम चिंता न करो, मैं पैदल चलूंगी।
कल्याणी ने मन-ही-मन निश्चय किया- न होगा, राह में मरकर गिर पड़ूंगी; यह दोनों जन तो बचे रहेंगे।
दूसरे दिन सबेरे, साथ में कुछ धन लेकर घर-द्वार में ताला बंद कर, गायों को मुक्त कर और कन्या को गोद में लेकर दोनों जन राजधानी के लिए चल पड़े। यात्रा के समय महेंद्र ने कहा- राह बड़ी भयानक है। कदम-कदम पर डाकू और लुटेरे छिपे हैं; खाली हाथ जाना उचित नहीं है। यह कहकर महेंद्र ने फिर घर में वापस जाकर बंदूक, गोली बारूद साथ में ले ली।
यह देखकर कल्याणी ने कहा-अगर अस्त्र की बात याद की है तो जरा लड़की को गोद में सम्हाल लो, मैं भी हथियार ले लूं यह कहकर कल्याणी ने लड़की महेंद्र की गोद में देकर घर के भीतर प्रवेश किया। महेंद्र ने पूछा-तुम कौन-सा हथियार लोगी
कल्याणी ने घर में जाकर विष की एक डिबिया अपने कपड़ों के अंदर छिपा ली।
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