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Old 06-02-2013, 12:16 AM   #10
Dark Saint Alaick
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Default Re: इनसे सीखें जीने का अन्दाज़

साक्षरता से गरीबी दूर करते ‘सामंत’

कई बार हमारे सामने ऐेसे उदाहरण सामने आते हैं जब हमे पता चलता है कि ऊंचे पद पर पहुंचे अमूक शख्स का बचपन बेहद गरीबी में गुजरा है। आर्थिक तंगी होने के बावजूद उन्होंने शिक्षा ग्रहण की और अपने लक्ष्य की और आगे बढ़ते चले गए। इसका एक और सबसे बड़ा जीता जागता उदाहरण हैं डॉ. अच्युत सामंत जिनका बचपन गरीबी में बीता लेकिन अपनी आर्थिक व्यवस्था खराब होने के बावजूद भी वे हिम्मत नहीं हारे और शिक्षा ग्रहण की और आज वह केआईटीटी और केआईएसएस जैसी संस्थाओं के संस्थापक हैं। अत्यंत गरीबी के कारण इनके बचपन का अनुभव काफी कड़वा रहा ,फिर भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी और आज वह विश्व के सबसे बड़े निशुल्क आदिवासी आवासीय संस्थान के संस्थापक हैं, जो कलिंगा इंस्टिट्यूट आफ सोशल साइंसेज के नाम से प्रचलित है। डॉ. सामंत को पूर्ण विश्वास है की गरीबी से निरक्षरता पनपती है और साक्षरता से गरीबी दूर होती है। इसी विश्वास को कायम रखते हुए वह अनेक संघर्षों से पार पाते गए और अपने नेक इरादे और निरंतर प्रयास की बदौलत हर लक्ष्य को हासिल करते गए। उस दौर में जब उनके लिए दो वक्त की रोटी की कल्पना एक सुंदर स्वप्न था वहीं से आज एक महान विश्वविद्यालय की स्थापना करने वाले सामंत की कहानी सुनने वालों को उनकी मेहनत पर गर्व होता है। उन्हें देखकर यह अहसास होता है की अगर मन में किसी भी काम को करने का दृढ़ संकल्प है तो किसी साधन की जरुरत नहीं रह जाती। रास्ते अपने आप निकलते जाते हैं। रोजाना 16 घंटे और साल में 365 दिन काम कर आज वो खुद असमंजस में पड़ जाते हैं और भगवान को इतने नेक काम में अपनी सहायता के लिए धन्यवाद देते हैं। केवल 5000 रुपए से दो कमरों में छोटे से आईटीआई से शुरुआत करते हुए केआईआईटी ने आज विश्व में तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में मिसाल कायम की है। आईटीआई की स्थापना इस उद्देश्य के साथ बिलकुल नहीं की थी की उसे एक विश्वस्तरीय विद्यालय बना कर पैसे कमाए जाएं। उसका उद्देश्य था की जिस भुखमरी में उनका बचपन बीता वह समाज के गरीब और पिछड़ी जाति के लोगों को न देखना पड़े और इसी सोच के साथ उन्होंने वर्ष 1993 में केवल 125 बेसहारा आदिवासी बच्चों से केआईएसएस की शुरुआत की और आज यह संस्थान 20 हजार आदिवासी बच्चों के साथ विश्व मंच पर दूसरा शान्ति निकेतन बन गया है। आज उनके चेहरे पर जो खुशी झलकती है उससे कोई भी व्यक्ति उनके वयक्तित्व का अनुमान लगा सकता है। ढेरों पुरस्कारों से सम्मानित डॉ. सामंत का सबसे बड़ा पुरस्कार है दूसरों के जीवन में खुशी लाना। समाज में ऐसे लोगों की आज बहुत जरुरत है जो नि:स्वार्थ भाव से समाज के लिए अपने आपको समर्पित करें और देश को आगे बढाने की जिम्मेदारी लें।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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