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Old 07-10-2011, 05:23 PM   #56
malethia
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Default Re: ऐसी की तैसी।

चीकू ने अपने दादा से पूछा कि जब भी मेरे से कोई गलती हो जाती है तो आप झट से कह देते हो कि तेरी ऐसी की तैसी। आखिर यह ऐसी की तैसी होती क्या है? दादा ने चीकू को बड़े ही प्यार से समझाया कि ऐसी की तैसी कुछ नहीं, केवल एक मुहावरा है लेकिन यह तुम्हारे जैसे अक्ल के अंधे को समझ नहीं आ सकता।
इतना सुनते ही चीकू जोर जोर से रोते हुए अपनी मां से बोला कि दादा जी मुझे अंधा कह रहे हैं। अपने कलेजे के टुकड़े की आंखों में आंसू देखते ही चीकू की मां का खून खौलने लगा। उसने बात की गहराई को समझे बिना कांव-कांव करते हुए दादा के कलेजे में आग लगा दी।
दादा ने एक तीर से दो शिकार करते हुए अपनी बहू को डांटते हुए कहा कि लगता है कि बच्चों के साथ तुम्हारी अक्ल भी घास चरने गई है। न जाने इस परिवार का क्या होगा जहां हर कोई खुद को नहले पर दहला समझता है। बहू तुम तो अच्छी पढ़ी लिखी हो। मुझे तुम से यह कदापि उम्मीद नहीं थी कि तुम कान की इतनी कच्ची हो। मैं तो तुम्हारे बेटे को सिर्फ मुहावरों के बारे में बताने की कोशिश कर रहा था, लेकिन मेरी बातें तो तुम लोगों के सिर के ऊपर से ही निकल जाती है।
इतना कहते-कहते दादा जी की सांस फूलने लगी थी परंतु उन्होंने अपनी बात जारी रखते हुए कहा कि मुहावरे किसी भी भाषा की नींव के पत्थर की तरह होते हैं जो उसे जिंदा रखने में मदद करते हैं। सारा गांव मेरी इतनी इज्जत करता है लेकिन तुम्हारे लिए तो मैं घर की उस मुर्गी की तरह हंू जिसे दाल बराबर समझते है। लोग तो अच्छी बात सीखने के लिए गधे को भी बाप बना लेते हैं।
इससे पहले कि दादा मुहावरों के बारे में और भाषण देते, चीकू ने कहा कि लोग गधे को ही क्यूं बाप बनाते हैं, हाथी या घोड़े को क्यूं नही? दादा जी ने प्यार से चीकू को समझाया कि सभी मुहावरे किसी न किसी व्यक्ति के अनुभव पर आधारित होते हुए हमारी भाषा को गतिशील और रूचिकर बनाने के लिये होते है। हां, कुछ मुहावरे ऐसे होते हैं जो किसी एक खास धर्म और जाति के लोगों पर लागू नहीं होते।
चीकू ने हैरान होते हुए पूछा कि यह कैसे मुमकिन है? दादा जी ने चीकू को बताया कि अब एक मुहावरा है सिर मुंड़ाते ही ओले पड़े। यह मुहावरा किसी तरह भी सिख लोगों पर लागू नहीं होता क्योंकि सिर तो सिर्फ हिंदू लोग ही मुंडवाते हैं। ऐसा ही एक और मुहावरा है, कल जब मैं रात को क्लब से रम्मी खेल कर आया तो मेरी हजामत हो गई। इतना तो आप भी मानते होंगे कि सब कुछ मुमकिन हो सकता है लेकिन किसी सरदार जी की हजामत करने के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता।
अजी जनाब आप ठहरिये तो सही, अभी एक और बहुत बढ़िया मुहावरा आपको बताना है, वो है हुक्का पानी बंद कर देना। अब सिख लोग ऐसी चीजों का इस्तेमाल करते ही नहीं तो उनका हुक्का पानी कैसे बंद हो सकता है? इतना सुनते ही चीकू ने दांतों तले उंगली दबाते हुए दादा से पूछा कि अगर आपको उंगली दबानी पड़े तो कहां दबाओगे क्योंकि आप के दांत तो हैं नही?
यही नहीं, ऐसे बहुत से और भी मुहावरे हैं जिन को बनाते समय लगता है, हमारे बुजुर्गों ने बिल्कुल ध्यान नहीं दिया। सदियों पहले इनके क्या मायने थे, यह तो मैं नहीं जानता लेकिन आज के वक्त में तो इनके मतलब बिल्कुल बदल चुके हैं। एक बहुत ही पुराना लेकिन बड़ा ही मशहूर मुहावरा है कि न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी। अरे भैया, नाचने के लिए राधा को नौ मन तेल की क्या जरूरत पड़ गई? अगर नाचने वाली जगह पर थोड़ा सा भी तेल गिर जाये तो राधा तो बेचारी फिसल कर गिर नहीं जायेगी। वैसे भी आज के इस महंगाई के दौर में नौ मन तेल लाना किस के बस की बात है? घर के लिये किलो-दो किलो तेल लाना ही आम आदमी को भारी पड़ता है।
दादा ने चीकू से एक और मुहावरे की बात करते हुए कहा कि यह मुहावरा है बिल्ली और चूहे का। मैं बात कर रहा हूँ 100 चूहे खाकर बिल्ली हज को चली। अब कोई मुहावरा बनाने वाले से यह पूछे कि क्या उसने गिनती की थी कि बिल्ली ने हज पर जाने से पहले कितने चूहे खाये थे? क्या बिल्ली ने हज में जाते हुए रास्ते में कोई चूहा नहीं खाया। अगर उसने कोई चूहा नहीं खाया तो रास्ते में उसने क्या खाया था? वैसे क्या कोई यह बता सकता है कि बिल्लियां हज करने जाती कहां है? कुछ भी हो, यह बिल्ली तो बड़ी हिम्मत वाली होगी जो 100 चूहे खाकर हज को चली गई।
अब जौली अंकल अपनी मुहावरों की बात को यही खत्म करना चाहते हैं नहीं तो कुछ लोग ऐसे डर कर गायब हो जायेंगे जैसे गधे के सिर से सींग। जी हां, मैं बात कर रहा हंू दौड़ने भागने की। इससे पहले कि अब आप मेरे मुहावरों की ऐसी की तैसी करें, मैं तो यहां से 9 दो 11 हो जाता हूं।
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