Re: प्रश्नचिह्न
वस्तुतः यह सूत्र मैंने पवित्रा जी के लिए बनाया था। पवित्रा जी के सूत्र ‘जि़न्दगी गुलज़ार है’ में उनके निम्न अनुच्छेद पर हमारे बीच व्यक्तिगत संदेशों के माध्यम से विचार-विमर्श हुआ था-
‘भगवान जब हमें इस दुनिया में भेजते हैं तो हमें बराबर मात्रा में अच्छाई और बुराई देते हैं या कह लीजिये बराबर मात्रा में पाप और पुण्य देते हैं। या हमारे पूर्व जन्म के कर्मों के आधार पर पाप और पुण्य देकर भेजते हैं। अब घ्न्दिगी एक पाइप की तरह है , जिसमें ये पुण्य और पाप भरे हुए होते हैं। अब जब हम कोई अच्छा कार्य करते हैं तो हमारे उस पाइप में वो अच्छाई जमा हो जाती है , अब जब एक तरफ से अच्छाई अंदर जाती है तो दूसरी तरफ से पाइप भरा होने के कारण बुराई बाहर निकल आती है। और हम सोचते हैं कि हमारे साथ अन्याय हुआ हमने अच्छा कर्म किया पर बदले में बुरा फल मिला। वहीँ जब हम कोई बुरा कर्म करते हैं तो वो पाप के रूप में उस पाइप में जमा हो जाती है अब जब बुराई अंदर जाती है तो दूसरी तरफ से अच्छाई बहार निकल आती है , और हम खुश हो जाते हैं कि बुरे कर्म का अच्छा फल मिला यानि अब से बुरे कर्म ही करने हैं। और ये क्रम यूँही लगातार चलता रहता है।’
पवित्रा जी से मेरा विनम्र कथन था कि उपरोक्त अनुच्छेद में दिया गया तर्क मात्र मन बहलाने के लिए ही उपयुक्त हैे, किन्तु सत्य यह नहीं है। आज सोनी पुष्पा जी, कुकी जी और पवित्रा जी की टिप्पणी देखने से ऐसा प्रतीत होता है- ये तीनों बुद्धिजीवी लगभग सत्य के निकट पहुँच चुके हैं, किन्तु अपरिहार्य कारणों के चलते अपनी बात यहाँ पर अधूरी छोड़ रहे हैं। हम स्वयं भी इससे अधिक तर्क यहाँ पर नहीं दे सकते। अतः तीनों को बधाइयाँ।
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