Re: विमुखता का विकल्प
काफी पहले मैंने दिवाली के मौके पर एक हिंदी पत्रिका में एक लेख पढ़ा था. इसका शीर्षक था "गॉडेस लक्ष्मी यानी पईसा का गॉडेस." इसमें एक कान्वेंट स्कूल की अध्यापिका को विषय पर लेक्चर देते बताया गया था. शीर्षक से ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि उस व्यंग्य लेख में लक्ष्मी जी को कैसे याद किया गया होगा. आपका आलेख पढ़ कर मुझे वह लेख याद आ गया. धन्यवाद, रजत जी.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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