Re: निंदक नियरे राखिये
कबीर दासजी ने कहा है की जो हमारी निंदा करता है ,उसे हमें अधिकाधिक अपने पास ही रखना चाहिए ,क्योंकि वह तो बिना पानी और साबुन के ही हमारी कमियां बता कर हमारे स्वभाव को साफ़ करता है।
लेकिन क्या आज हम में इतनी सहनशक्ति है की हम अपनी निंदा स्वीकार कर पाएं। अपने आलोचकों को अपने पास रख पाएं ?हम ऐसे लोगों से दूर ही रहना पसंद करते हैं जो हमारी निंदा करते हैं ,क्योंकि हम खुले दिल से अपनी आलोचना स्वीकार नहीं कर पाते। और आज ऐसे आलोचक भी बहुत कम ही होंगे जो वाकई में हमारी कमियों को सही तरीके से बताएं और उन्हें सुधरवाने का प्रयास करें। मैं आप लोगों से आपके विचार इस बारे में जानना चाहती हूँ की आप लोग क्या सोचते हैं?
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