Re: रहस्य रोमांच की कहानियाँ
एक राक्षसी [1]
आलेख आभार: सौरभ राज
मानव मस्तिष्क स्मृतियों को अपूर्व भण्डार है। जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त की सभी बातों को संजो कर रखे रहता है यह। जन्म से लेकर होश सम्भालने तक की भी बातें इस भण्डार में होती हैं किन्तु कभी उभर कर आ नहीं पातीं, हाँ किसी को हिप्नोटाइज कर ट्रांस में लाकर उन्हें भी अवचेतन के गर्त से चेतन की सतह तक लाया जा सकता है। होश सम्भालने के बाद की स्मृतियाँ अचेतन रूपी यादों के कब्र में पूरी तरह से दफन नहीं हो पातीं और अक्सर बुलबुले के रूप में चेतन तक आती रहती हैं।
कल मुझे भी अपने बचपन की अनेक बातें याद आ गईं थी। याद आने का कारण था कल, राहुल सिंह के बुलावे पर, “छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग” के शिविर में पहुँच जाना। राहुल जी का स्नेह मुझे मिलता ही रहता है और विशेष कार्यक्रमों में वे मुझे कभी भी विस्मृत नहीं करते। “छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग” के उस शिविर में एक सत्र छत्तीसगढ़ी कहानियों का भी था। कहानी को छत्तीसगढ़ी में “कहिनी” कहा जाता है। इस शब्द ने मुझे अपने बचपन के दिनों में दादी माँ द्वारा सुनाई गई कितनी ही कहानियों को बरबस याद दिला दिया – भगवान राम की कहानी, श्रवण कुमार की कहानी, कृष्ण और सुदामा की कहानी, गज और ग्राह की कहानी आदि के साथ ही साथ “कोलिहा अउ बेन्दरा” के कहिनी “ढूँढ़ी रक्सिन” के कहिनी.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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