Re: रहस्य रोमांच की कहानियाँ
इन सभी कहानियों को मेरी दादी माँ मुझे छत्तीसगढ़ी में सुनाया करती थीं। किसी भी दिन मैं रात को बगैर कहानी सुने सोता नहीं था। कहानी के सिवा और कुछ चारा भी तो नहीं था मेरे पास, रेडियो और टीवी तो दूर की बात है, घर में बिजली का कनेक्शन तक नहीं था। रात में ‘कन्दील’, ‘चिमनी’ या ‘फुग्गा’ की रोशनी और दादी माँ की कहानी मुझे बहुत ही भाती थीं। “खिरमिच” की कहानी मुझे बहुत पसन्द थी, पर “खिरमिच” की कहानी कभी-कभार ही मुझे सुनने को मिलता था क्योंकि उस कहानी को मुझे मेरी दादी माँ नहीं बल्कि मेरी माँ सुनाती थी, जिन्हें घर के काम-काज से कभी फुरसत ही नहीं मिल पाती था मुझे कहानी सुनाने के लिए।
इस कारण से जब भी मुझे मौका मिलता मैं माँ से जिद करके कहा करता था “माँ, आज मोला खिरमिच के कहिनी सुना ना” और वे कभी-कभार मेरे जिद को देखकर सुनाना शुरू कर देती थीं- “सुन रे गोपाल, दू बहिनी रहिन।” (“सुन रे गोपाल, दो बहनें थीं।”) मैं कहता, “हूँ”, क्योंकि मैं जानता था कि बिना हुँकारू के कहानी सुनाने का रिवाज ही नहीं था। “छोटे बहिनी के चार बेटा रहिस, मूड़ुल, हाथुल, गोड़ुल अउ खिरमिच।” (“छोटी बहन के चार बेटे थे, मूड़ुल, हाथुल, गोड़ुल और खिरमिच।”) “हूँ।” “बड़े बहिनी रहिस रक्सिन। वोहर अपन घरवाला अउ सब्बो लइका मन ला खा डारे रहिस।” (“बड़ी बहन राक्षसिन थी। उसने अपनेघरवाले और बच्चों को खा डाला था।”) “हूँ।” “एक दिन रक्सिन हा अपन छोटे बहिनीला कहिस के बहिनी, आज मोला बने नइ लागत हे, रात में मोर संग सुते बर तोर कोनो लइका ला भेज देबे का?” (“एक दिन राक्षसिन ने अपनी छोटी बहन से कहा कि बहन, आज मेरी तबियत ठीक नहीं है, रात में मेरी देखभाल के लिए अपने किसी बच्चे को भेज दोगी क्या?”)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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