Re: रहस्य रोमांच की कहानियाँ
“खिरमिच बोलिस, ‘हव दाई, मैं हा चल दुहूँ’।” (“खिरमिच बोला, ‘ठीक है माँ, मैं चल दूँगा’।”)
“हूँ।”
“साँझ होइस तो खिरमिच हा जंगल में अपन बड़े दाई घर पहुँ गइस।” (“शाम हुई तो खिरमिच जंगल में अपनी बड़ी माँ के घर पहुँच गया।”)
“हूँ।”
“वोखर बड़े दाई हा बहुत खुश होइस अउ कहिस के बेटा खिरमिच, बने करे रे। अब मैं हा जंगल में जात हौं, अधरतिया आहूँ। तैं हा खा-पी के सुत जाबे।” (“उसकी बड़ी माँ बहुत खुश हुई और बोली कि बेटा खिरमिच, तूने बहुत अच्छा किया। अब मैं जंगल में जा रही हूँ, आधी रात को वापस आउँगी। तू खा पी-कर सो जाना।) “हूँ।” “रक्सिन के जाए के बाद खिरमिच हा भात-साग खा के सुते के तैयारी करिस। एक ठिक मोटहा असन गोल सुक्खा लकड़ी ला खटिया में रख के ओढ़ा दिहिस अउ अपन हा लुका के सुत गे।” (“राक्षसिन के जाने के बाद खिरमिचने खाना खाकर सोने की तैयारी की। एक मोटी, गोल सूखी लकड़ी को उसने खाट पर रख कर ओढ़ा दिया और स्वयं छुप कर सो गया।”) “हूँ।” “अधरतिया होइस तो रक्सिन हा घर आइस। वोखर नाक में मनखे के गंध हा आत रहिस हे।” (“आधी रात हुई तो राक्षसिन घर वापस आई। उसकी नाक में आदमी की गंध आ रही थी।”)
“हूँ।”
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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