Re: रहस्य रोमांच की कहानियाँ
एक राक्षसी [2]
“मानो गन, मानो गन, काला खाँव, कालाबचाँव, इही खिरमिच ला खाँव रे कहिके वो हा खटिया में रखे लकड़ी ला कटरंग-कटरंग चाब-चाब के खा डारिस।” (“मानव गंध, मानव गंध, किसको खाउँ, किसको बचाऊँ, इसी खिरमिच को खाउँगी कहते हुए उसे खाट पर रखे लकड़ी को चबा-चबा कर खा डाला।”)
“हूँ।”
“फेर हँउला भर पानी ला पी के कहिस के हत्त रे खिरमिच, हाड़ाच् हाड़ा रेहे रे, थोरको मास नइ रहिस तोर में।” (“फिर एक हुंडी पानी पीकर बोली कि हत्तेरे की रे खिरमिच, तू हड्डी ही हड्डी था, माँस जरा भी नहीं था तुझमें।”)
“हूँ।”
“अइसे कहिके रक्सिन हा सुत गे।” (“ऐसा कह कर राक्षसिन सो गई।”)
“हूँ।”
“बिहिनिया होइस तो खिरमिच चिचियाके कहिस जोहार ले बड़े दाई अउ दुआरी ला खोल के जल्दी से भाग गे।” (“सवेरा होने पर खिरमिच ने चिल्लाकर अपनी बड़ी माँ का अभिवादन किया और दरवाजा खोल कर जल्दी से भाग लिया।”)
“हूँ।”
“मैं हा खिरमिच ला नइ खा पाएवँ कहिके रक्सिन ला अखर गे।” (“मैं खिरमिच को नहीं खा पाई सोचकर राक्षसिन को अखरने लगा।”)
“हूँ।”
“कुछु दिन जाय के बाद रक्सिन हा फेर अपन छोटे बहिनी तीर आ के कहिस के बहिनी, आज मोला बने नइ लागत हे, रात में मोर संग सुते बर तोर कोनो लइका ला भेज देबे का?” (“कुछ दिन बीतने के बाद राक्षसिन ने अपनी छोटी बहन के पास आकर फिर से कहा कि बहन, आज मेरी तबियत ठीक नहीं है, रात में मेरी देखभाल के लिए अपने किसी बच्चे को भेज दोगी क्या?”)
“हूँ।”
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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