Re: ज़िन्दगी ... .
नाराज़ नहीं मै तुमसे ख़ुदा से खफा हूँ
करना होता है जुदा तो मिलाते क्यों हो ?
सुना है हर मंजिल मिल जाती है ढूँढने से
मगर मंजिल ही नहीं जिसकी वो रास्ता दिखाते क्यों हो ?
बने नहीं रिश्ते इतने जितने टूट गए
दूर करना ही था सबसे तो पास लाते क्यों हो ?
नहीं जाती उन रिश्तों की याद दिल से
भूलना ही था तो उन्हें याद दिलाते क्यों हो ?
गर जख्न्म ही देना है तुम्हे बार-बार
फिर इतना नाजुक दिल बनाते ही क्यों हो ?
जानते हो सर झुकेगा नहीं मेरा भी तेरे दर पर
फिर हर बार मुझे अजमाते क्यूँ हो ?
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