Re: नारी की अभिव्यक्ति
.. और तब विधाता ने मिट्टी, पत्थर, पहाड़, बालू बनाये। जो जीवन था, जो खारा था उसे घेर दिया और कहा – तुम हो! तब मैं जन्मी। मैंने किलकारी भरी और जीवन गतिमय प्रवाही गुरुगम्भीर स्थायी हुआ। उसने आश्चर्य से देखा, प्रसन्नता उसकी आँखों से टपकी और पानी हुई। मैं सागर हुई।
मुझे सोख मिट्टी उपजाऊ हुई, पत्थर कठोर विवर हुये, पहाड़ों ने नभ को चुनौती देती ऊँचाइयाँ पकड़ी। इतना शोषण! मैंने उसाँस भरी और अनिल प्रवाह में बालुका उड़ चली, आँधियाँ मचलीं। जीवन सब ओर फैल गया। खारापन जीवन द्रव का गुण हुआ।
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