Re: नारी की अभिव्यक्ति
तुमने पहला वाक्य लिखा – नदी सागर में समाती है। तुमने नद को स्त्री लिखा और मुझ सागर को पुरुष! उल्टा लिखा फिर भी मुझे विशेष प्यारे हुये। क्यों? क्यों कि जब तुम मुझमें समाते हो तो मैं पुन: आदिम होती हूँ – वह जीवन जो चहुँओर फैल गया है उसे मैं नहीं पहचान पाती लेकिन तुम्हारे भीतर वही पुराना खारापन पाती हूँ जिसे कभी विधाता ने घेर दिया था। उस समय मैं मुक्त होती हूँ। नहीं मनु! मैं बस होती हूँ और मेरे पार्श्व में तुम होते हो, मैं अकेली नहीं होती। ऐसे क्षणों में ही प्रार्थनायें उमगती हैं और वह भी जिसे प्रेम कहते हैं।
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