Re: Pyar kya hai....
कब आए, कब जाए, कहां ठहेरे, क्या खाए?
है प्यार तो मुसाफिर, मर्जी से आए जाए,
नाराज होता है, उकता जाता है,
कौन जाने किसकी बातों मे आता है,
बस उठता है, चला जाता है,
कितना कोई रोके, कितना समझाए,
है प्यार तो मुसाफिर....मर्जी से आए जाए!
न रुपिया, न पैसा जो कोई कमाए,
न शर्बत, न पानी जो कोई बहाए,
न धुप, न बत्ती जो कोई जलाए,
न रेखा, न कुंडली जो कोई पढाए,
न मंदिर, न मस्जिद, जो कोई बनाए,
मन से ही निकले और मन में ही समाए,
है प्यार तो मुसाफिर....मर्जी से आए जाए!
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