और आज की हमारी शख्सियत हैं (16 जनवरी)
संगीतकार ओ पी नय्यर / O P Nayyar
चार दशक से अधिक समय तक बॉलीवुड में अपने संगीत की कभी धूमिल न पड़ने वाली छाप छोड़ने वाले मस्तमौला संगीतकार ओ पी नय्यर संगीत की अपनी अलग शैली, अपने अक्खड़पन और अपने ज़िद्दी स्वभाव के कारण सदा याद किये जायेंगे. वे अपना अलग मुकाम बनाने में कामयाब रहे. उनकी फिल्मों तथा संगीत में पंजाबी जन जीवन का अल्हड़पन, उमंग तथा उत्साह बहुत खूबसूरती से उभर कर सामने आता है.
उन्होंने सन 1949 में बनी फिल्म ‘कनीज़’ से अपने फिल्म कैरियर की शुरुआत की लेकिन स्वतंत्र संगीतकार के रूप में 1952 में बनी फिल्म ‘आसमान’ उनकी पहली फिल्म थी. इसके बाद ‘छम छमा छम’ और ‘बाज़’ जैसी कुछ फिल्मे आयीं लेकिन यह सभी फिल्मे बुरी तरह फ्लॉप रहीं. पार्श्वगायिका गीता राय (बाद में गीता दत्त) की सिफ़ारिश पर गुरुदत्त ने अपनी फिल्म ‘आर-पार’ तथा कुछ अन्य फिल्मों में उन्हें बतौर संगीतकार लिया. यहाँ से उनका कैरियर ग्राफ ऊपर की ओर जाना शुरू हो गया. अन्य निर्माता निर्देशकों के साथ भी वे बहुत कामयाब रहे.
उन्होंने गीत की सिचुएशन के हिसाब काफ़ी समय तक आशा भोंसले, शमशाद बेगम और मोहम्मद रफ़ी से पार्श्वगायन करवाया और वे उनके पसंदीदा कलाकार बने रहे. आशा से अनबन होने के बाद उन्होंने कई नई गायिकाओं से पार्श्व गायन करवाया. फिल्म ‘आसमान’ के समय ही उस समय की सर्वाधिक चर्चित गायिका लता मंगेशकर से उनका विवाद हो गया और यह दोनों कभी साथ नहीं आये.
फ़िल्म सी.आई.डी. (1956), नया दौर (1957) और फ़ागुन (1958) को बॉक्स ऑफिस पर ज़बरदस्त सफलता प्राप्त हुई. इनमे से नय्यर साहब को ‘नया दौर’ के लिये बेस्ट संगीतकार के फ़िल्मफ़ेयर एवार्ड से भी नवाज़ा गया. सी आई डी और फ़ागुन को भी नोमिनेशन मिला. फिल्म ‘सावन की घटा’ तथा ‘प्राण जाये पर वचन न जाये’ में उनके द्वारा संगीतबद्ध गीतों को फ़िल्मफ़ेयर एवार्ड प्राप्त हुआ. ये दोनों गीत आशा भोंसले द्वारा गए गए थे.
उनकी अन्य प्रमुख फिल्मों में हावड़ा बृज (1958), फिर वही दिल लाया हूँ (1963), कश्मीर की कली (1964), मेरे सनम (1965), सावन की घटा तथा बहारें फिर भी आयेंगी (1966), किस्मत (1968), संबंध (1969), और प्राण जाये पर वचन न जाये (1974) आदि शामिल हैं. नय्यर साहब का अंतिम समय एकाकी बीता. आज उनके जन्मदिन पर हम उन्हें आदर पूर्वक याद करते हैं.