Re: कुछ यहाँ वहां से............
"नहीं!...उससे भी पहले से...जब वो हमेशा उस ऐंटीक माडल की टूटी साईकिल पे नज़र आया करता था"....
"वही?..जो कई बार बीच रास्ते ही जवाब दे पंचर हो जाया करती थी?"...
"कई बार क्या?...हमेशा ही तो उसी को घसीटता नज़र आता था बल्कि यूँ कहो तो ज़्यादा अच्छा रहेगा कि वो साईकिल पे कम और साईकिल उस पे ज़्यादा लदी नज़र आती थी"
"बिलकुल सही कहा... ये प्वाईंट तो नोट कर लिया...अब आगे?"मैँ नोटबुक में कलम घिसता हुआ बोला...
"वो सब बातें लिखना कि कैसे वो उल्टे सीधे दाव पेंच चलता हुआ...एक मामुली कवि से आज साहित्य जगत की मानी हुई हस्ती बन बैठा है"...
"हम्म!...
"कैसे उसकी हाजरी के बिना हर महफिल सूनी-सूनी सी लगती है"..
"लेकिन कहीं ये उसकी तारीफ तो नहीं हो जाएगी ना?"...
"यही तो इश्टाईल होना चाहिए बिड्ड़ु"...
"क्या मतलब?"..
"मज़ा तो तब है जब तुम्हारे एक वाक्य के दो-दो मतलब निकलें"...
"कैसे?"...
"तुम्हारी लेखनी से एक तरफ लोगों को लगना चाहिए कि तुम तारीफ कर रहे हो और...वहीं दूसरी तरफ दूसरों को साफ़-साफ़ दिखाई देना चाहिए कि तुम तबीयत से दिल खोल के जूतमपैजार कर रहे हो"...
"लेकिन क्या ऐसे किसी इनसान की इस तरह सरेआम पोल खोलना ठीक रहेगा?"...
"इनसान?"...
"अरे!...अगर सही मायने में इनसान होता तो आज अपने घर में रह रहा होता ना कि घर जमाई बन के अपने ससुर के बँगले पे कब्ज़ा जमा उन्हीं की रोटियाँ तोड़ रहा होता"...
"हम्म!...
"सब जानती हूँ मैँ कि कैसे उसने उस मशहूर कवि की बेटी को अपने प्यार के जाल में फँसा शादी का चक्कर चलाया"...
"हम्म!...शादी के पहले था ही क्या उस टटपूंजिए के पास? और अब ठाठ देखो पट्ठे के"..
"पहले तो ले दे के वही एक ही...महीनों तक ना धुलने की वजह से सफेद से पीला पड़ा हुआ कुर्ता पायजामा नज़र आता था उसके तन पे...और अब?...अब एक से एक फ्लोरोसैंट कलर के कुर्ते पायजामे जैकेट के साथ उसके बदन की शोभा बढा रहे होते हैँ"...
"मैंने तो यहाँ तक सुना है कि पूरे तीस सैट बिना नाड़े के पायजामे सिलवा रखे हैँ पट्ठे ने"..
"बिना नाड़े के?"...
"हाँ!..बिना नाड़े के"...
"लेकिन वो भला किसलिए?"...
"किसलिए क्या?..अपने कैरियर के शुरुआती दिनों में हूटिंग के डर से पायजामा ढीला हो जाया करता होगा पट्ठे का..
"ओह!...तो इसका मतलब उसी के डर के मारे उसने पायजामे में नाड़े के बजाए इलास्टिक का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया?"
"और नहीं तो क्या?"...
"खैर!..हमें क्या?...नाड़े वाले सिलवाए या बिना नाड़े वाले"...
"साफ कपड़े पहनने से कोई सचमुच में अन्दर से साफ नहीं हो जाता ...रहेगा तो वो हमेशा ओछा का ओछा ही"...
"हम्म!...ये सब आईडियाज़ तो नोट कर लिए मैँने...अब?"...
"ये भी लिखना नहीं भूलना कि कैसे वो अपने ब्लॉग के रीडरस और की संख्या बढाने के लिए...
अपनी रचनाओं में सरासर सैक्स परोस रहा है"..
"मेरे ख्याल से ये लिखना ठीक नहीं रहेगा"..
"क्यों?"..
"क्योंकि...कहानी पे पकड़ बनाए रखने के लिए और ..मनोरंजन के लिहाज से कई बार
|