झरोखे से कोई नव दुल्हन झाँकती
झर-झर झरती फुहारें
तीव्रतर बहतीं शीत बयारें |
तीर सी चुभतीं गात में
मन हो जाता हर्षित पल में |
मन मानस में कल-कल करतीं तरंगें
ज्यों सागर में शोर मचातीं लहरें
आओ सखी गीत मल्हार गायें
कुछ अंतर्मन की बात बताएं
गरज-गरज कर मेघ झमाझम जल बरसायें
हरित श्यामला अवनि को उन्मत्त बनाएं |
शुष्क सरिताओं में नव जीवन आये
वन उपवन में नव अंकुर उग आये |
नव कलिकाएँ घूंघट खोलतीं
मंद-मंद हँसी बिखेरतीं जैसे |
झरोखे से कोई नव दुल्हन झाँकती
मनहुँ वसुधा का सौन्दर्य आँकती |
झर-झर झरती फुहारें
तीव्रतर बहतीं शीत बयारें