इसलिए शायरी करने की हिमाक़त की है ...
इस तरह तुमने मेरे साथ मोहब्बत की है ;
जैसे पिछले जनम की कोई अदावत की है .
रूह तक ज़ख्म दिये , चाक़ गिरेबां बख्शा ;
एक उल्फ़त ने तेरी कितनी इनायत की है .
जितना तोड़ोगे दिल को , अक्स अपने पाओगे ;
जानेजां मैंने भी आईने - सी फ़ितरत की है .
तोड़ भी दोगे तो महसूस करोगे ख़ुश्बू ;
मैंने ये सोच के फूलों - सी तबीयत की है .
कैसे परवाना लुभा करके जलाया जाता ;
ऐ शमा तूने मुझे ख़ूब नसीहत की है .
चैन सुख बेच के कुछ ज़ख्म कमाए मैंने ;
एक नादान ने घाटे की तिज़ारत की है .
मेरा जज़्बा था जो पत्थर से ख़ुदा बन बैठे ;
मान एहसान मेरा , मैंने इबादत की है .
तेरे ख़िलाफ़ ज़ेहन जब भी मेरा जाता है ;
दिले नादान ने तेरी ही हिमायत की है .
मेरे जज़्बात तेरे दिल पे सदा देते रहें ;
इसलिए शायरी करने की हिमाक़त की है .
रचयिता ~~ डॉ .राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ .
( शब्दार्थ ~~ हिमाक़त = दुस्साहस , अदावत = दुश्मनी , रूह = आत्मा , चाक़ = फटा , गिरेबां = कॉलर , बख्शा = सौंपा , उल्फ़त = प्रेम , इनायत = कृपा , अक्स = आकृति , फ़ितरत = स्वभाव , तबीयत = मिजाज़ , परवाना = पतंगा , नसीहत = सीख , तिज़ारत = सौदा , इबादत = पूजा , ज़ेहन = दिमाग , हिमायत = तरफदारी, सदा = {अप्रत्यक्ष व्यक्ति को}आवाज़ )
Last edited by Dr. Rakesh Srivastava; 24-11-2012 at 07:23 AM.
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