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Originally Posted by Dr. Rakesh Srivastava
जितना तोड़ोगे दिल को , अक्स अपने पाओगे ;
जानेजां मैंने भी आईने - सी फ़ितरत की है .
कैसे परवाना लुभा करके जलाया जाता ;
ऐ शमा तूने मुझे ख़ूब नसीहत की है .
मेरा जज़्बा था जो पत्थर से ख़ुदा बन बैठे ;
मान एहसान मेरा , मैंने इबादत की है .
तेरे ख़िलाफ़ ज़ेहन जब भी मेरा जाता है ;
दिले नादान ने तेरी ही हिमायत की है .
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बहुत बहुत सुन्दर गजल लिखी है आपने राकेश जी..... हर एक शायरी काबिल-ए-तारीफ है पर ये चार शेर तो लाजवाब हैं .......