Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
‘‘अरे साला’’, रीना के मुंह से निकला। वही उसका चिरपरिचित अंदाज। लगा जैसे जान बाकी है। चहकना, फुदकना गलियाना सब कुछ उसका अपना था।
‘‘की होलो रीना।’’
‘‘कुछ नै, कांटा है।’’ इतना कहते हुए उसने प्रेमपत्र के डिब्बे को उठा लिया। इस घटना के कई दिन बीत गए पर मामले मे किसी प्रकार का कोई बदलाव नहीं आया। मुझे चिंता होने लगी। लगा जैसे कहीं कुछ बात है जो बिगड़ गई है।
आज वृहस्पतिवार का दिन है। रीना के उपवास का दिन। आज के दिन वह उपवास करती है और भगवान से मुझे पाने की कामना से। अमूमन गर्मी की वजह से कम लोग ही घर से बाहर गली मे नजर आ रहे थे। रीना के घर के पिछवाडें एक दलान था। दलान में गाय-गोरू के रखने की जगह थी और आगे का एक कमरा अतिथियों के लिए था। मैं यूं ही टहलता हुआ उधर से गुजर रहा था कि उस पर नजर पड़ गई। मुझे देखते ही वह कमरे के अंदर चली गई। मेरा मन बेचैन हो उठा। क्या वह मुझसे गुस्सा है? मैने आव देखा न ताव उसके दलान में प्रवेश कर जिस कमरे में वह गई थी चला गया। महीनों बाद आज वह मेरे सामने थी। दोनों के मुंह से बोल नहीं फूटे। क्षण मात्र भी नहीं बीता होगा की दोनों एक दूसरे की बाहों में थे। रीना आकर मुझसे लिपट गई, जैसे मां से बिछड़ा हुआ बच्चा। मैंने भी उसे अपनी आगोश में ले लिया। लगा जैसे वह मेरे सीने में समा जाना चाहती हो, समग्र।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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