Re: मानव जीवन और मूश्किले बनाम सरलताये
सोनीजी मैं कुछ हद तक आपकी बात से सहमत हू !..पर पूर्णरूप से नहीं !
भावुकता इन्सान को भगवान की बहुत बड़ी नेमत है तो खामी भी है ! भावुक व्यक्ति का तराजु उसके दिल में होता है !
वह सामने आनेवाली हर स्थिति और परिस्थिति को इसी तराजु से तौल के सुखी और दूखी होता रहता है ।
कठीनाईयां और मुश्कीले ऐसे तमाम व्यक्तियों के लिए दुख देने वाली ही साबीत होती है वो चाहे एक बार हो या बार—बार हो !
फीतरती तौर पर ऐसे तमाम लोग कठीनाईयां और मुश्कीलो से घबराते है और बार—बार अगर ये कठीनाईयां और मुश्कीले आती रहीं तो ये टुटने के कगार पर पहुच जाते है !
सोनीजी आपका ये विषय भी मेरी निजी जिन्दगी से बहुत ही गहरे से ताल्लुक रखने वाला है । बद्किस्मत से ये कठीनाईयां और मुश्कीले मेरे जीवन में लगातार रही है अब तक !....हर मुश्कील ने मुझे एक नई सीख दी है और ...और ज्यादा ताकत से लडने का होसला दिया है !!
....हर मुश्कील ने मुझे नि:सन्देह तकलिफ जरूर दी पर अन्त में मुस्कराहट भी अवश्य दी !
जीवन में भावुकता अवश्य होनी चाहीये पर इतनी ज्यादा भी नहीं कि व्यक्ति कायर बन जाए !!
भावुकता से इन्सान में निरंकुशपना खत्म हो जाता है और वो एक सामाजिक प्राणी बना रहता है ...पर जीवन में भावुकता का स्थान नियत होना जरूरी है !
आप चिंटीं जैसे छोटे जीव पर प्रयोग करना कभी ! जाती हुई चिटीं के राह में आप उंगली रखना ! ...वो तुरन्त अपना रास्ता बदल के आगे बढ जायेगी चाहे आप किनी ही बार व्यवधानपैदा करे !
संघर्ष का दूसरा नाम ही जीवन है !... और ये कठीनाईयां और मुश्कीले इस जीवन को सजाने और संवारने के औजार है नाकी व्यवधान !!
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