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Originally Posted by soni pushpa
....जिस प्रकार कमजोर नीव पर ऊँचा मकान खड़ा नहीं किया जा सकता ठीक इसी प्रकार यदि विचारो में उदासीनता, नैराश्य अथवा कमजोरी हो तो जीवन की गति कभी भी उच्चता की ओर नहीं हो सकती।....
निराशा का अर्थ ही लड़ने से पहले हार स्वीकार कर लेना है ....अतः आत्मबल रूपी ईट जितनी मजबूत होगी जीवन रूपी महल को भी उतनी ही भव्यता व उच्चता प्रदान की जा सकेगी।
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बहुत सुंदर. जिस मनोयोग से आपने इस आलेख को लिखा ओर पोस्ट किया है उसी मनोयोग से मैंने इसे पढ़ा है. इसके हर वाक्य से एक नया सत्य उभरता है जिसकी रोशनी में हम अपने जीवन के दुःख और सुख, आशा और निराशा की समीक्षा कर सकते है और अपने जीवन में वांछित सुधार ला सकते हैं. आपका बहुत बहुत धन्यवाद, बहन पुष्पा जी.