Re: एक सफ़र ग़ज़ल के साए में
काफ़िर गेसू वालों की रात बसर यूं होती है
(शायर: सागर निज़ामी)
काफ़िर गेसू वालों की रात बसर यूं होती है
हुस्न हिफाज़त करता है और जवानी सोती है
मुझ में तुझ में फ़र्क नहीं तुझमे मुझमे फ़र्क है ये
तू दुनिया पर हँसता है दुनिया मुझ पर हंसती है
सब्रो - सकूं दो दरिया हैं भरते भरते भरते हैं
तस्कीं दिल की बारिश है होते होते होती है
जीने में क्या राहत थी मरने में तकलीफ़ है क्या
तब दुनिया क्यों हंसती थी अब दुनिया क्यों रोती है
दिल को तो तशखीश हुई चारागरों से पूछूँगा
दिल जब धक धक करता है वो हालत क्या होती है
रात के आंसू ऐ ‘सागर’ फूलों से भर जाते हैं
सुबहे चमन इस पानी से कलियों का मुंह धोती है
Last edited by rajnish manga; 15-06-2013 at 12:06 AM.
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