Re: श्री कृष्ण-गीता (हिन्दी पद्द-रूप में)
पाँचवा अध्याय
निष्काम कर्म-योग
अर्जुन-
कर्मों का मैं सन्यास धरूं
अथवा निष्काम हो कर्म करूं
जो हित में हो वह बतला दें
मेरा पथ मुझको दिखला दें
भगवान-
दोनों पथ सुख करने वाले
दोनों पथ दुख हरने वाले
लेकिन मैं जो कहता हूँ कर
निष्काम कर्म के पथ पर चल
यह पथ आसान बड़ा, अर्जुन
इस पथ में कहीं न बाधा सुन
इसमें है बात न संशय की
हैं अलग-अलग पथ दोनों हीं
पर दोनों में है सुख अपार
दोनों पहुँचाते स्वर्ग-द्वार
नर ज्ञान-योग से जो पाए
वह कर्मों से भी मिल जाए
लेकिन बिन कर्मों के, अर्जुन
नर ज्ञान नहीं पा सकता सुन
निष्काम हुआ, जो कर्म करे
वह प्राप्त शीघ्र निर्वाण करे
अपने मन को अपने वश कर
तज विषय-वासना को जो नर
दुनिया के सारे काम करे
सब-के सब मेरे नाम करे
फ़ल में होवे अनुरक्त नहीं
फ़ल में होवे आसक्त नहीं
वह सच्चे सुख को पाता है
दुख उसको नहीं सताता है
जिसके वश में है मन-शरीर
जो कभी नहीं होता अधीर
जो सबको अपने-सा जाने
जो सबको अपने-सा माने’
निर्धन हो या हो विश्व-भूप
जो सब में देखे ब्रह्म-रूप
जग में करता सब काम-काज
धरती पर करता हुआ राज
जो मन में मान नहीं लाता
जो मन में तनिक न इतराता
जो कहता, करता दाता है
नर मूरख जो इठलाता है
ऐसा नर सबसे ऊपर है
ऐसा नर खुद हीं ईश्वर है
अज्ञान को ज्ञान हरे ऐसे
सूरज तम को हरता जैसे
है जिसके मन में दीप्त ज्ञान
वह ईश्वर का ही रूप जान
वह पाप नहीं कर सकता है
दुख में न कभी पड़ सकता है
वह जग के बीच रहे ऐसे
पानी में कमल रहे जैसे
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